तभी हम कोरोना को हराकर, हँसी खुशी ये जीवन बीता पायेंगे। तभी हम कोरोना को हराकर, हँसी खुशी ये जीवन बीता पायेंगे।
तभी एक आवाज मेरे कानों में आती है अजी सुनते हो कपड़े धोना भी बाकी है। तभी एक आवाज मेरे कानों में आती है अजी सुनते हो कपड़े धोना भी बाकी है।
यह मिट्टी का मटका भी अमृत कलश बन जाता है। यह मिट्टी का मटका भी अमृत कलश बन जाता है।
कभी तो मैं भी बनूँगा शबनम से शोला। कभी तो मैं भी बनूँगा शबनम से शोला।
बुद्धि, विवेक पर डालकर प्रकाश हमें पाठको के समक्ष प्रस्तुत करती है। बुद्धि, विवेक पर डालकर प्रकाश हमें पाठको के समक्ष प्रस्तुत करती है।
भूलकर सभी राग -द्वेष हो अहिंसक समाज की संरचना। भूलकर सभी राग -द्वेष हो अहिंसक समाज की संरचना।